नरेंद्र मोदी बार-बार कांग्रेस पार्टी पर एससी/एसटी और अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों को मिलने वाला आरक्षण कम करने का आरोप लगा रहे हैं. पीएम मोदी का दावा है कि कांग्रेस का मकसद इन लोगों के हिस्से का आरक्षण कम करके धर्म के आधार पर सभी मुस्लिमों को देना है, जो कि ये संविधान के खिलाफ है.
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भारतीय संविधान के तहत मुसलमानों को आरक्षण मिल सकता है या नहीं, अगर हां तो कैसे मिलता है और अगर मुस्लिम को आरक्षण दिया जा सकता है तो बीजेपी को किस बात पर ऐतराज है.
पहले समझिए क्या मुसलमानों को मिल सकता है आरक्षण?
भारत में कई मुस्लिम समुदायों को केंद्र और राज्य स्तर पर ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) आरक्षण का फायदा मिलता है. ये सीधे तौर पर संविधान के अनुच्छेद 16(4) से जुड़ा है. ये अनुच्छेद कहता है कि राज्य की सेवाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व न रखने वाले पिछड़े वर्गों को आरक्षण दिया जा सकता है.
जस्टिस ओ चिन्नप रेड्डी की अध्यक्षता वाले तीसरे पिछड़ा वर्ग आयोग (Backward Class Commission) ने अपनी रिपोर्ट में ये बताया है कि शिक्षा और सामाजिक रूप से कई मुस्लिम समुदाय पिछड़े हुए हैं. शिक्षा के मामले में कुछ मुसलमानों की आर्थिक स्थिति अनुसूचित जातियों (SC) जैसी है.
इसी आधार पर आयोग ने संविधान के अनुच्छेद 15(4) के तहत मुसलमानों को सिर्फ शिक्षा में आरक्षण देने की सिफारिश की. 2006 में जस्टिस सच्चर कमेटी की रिपोर्ट भी इसी नतीजे पर पहुंची. तो कुल मिलाकरसंविधान के प्रावधानों और पिछड़े वर्ग आयोगों की रिपोर्टों के आधार पर कुछ मुस्लिम समुदायों को ओबीसी आरक्षण दिया जाता है.
हालांकि, ओबीसी आरक्षण में भी एक पेच है जिसे हम ‘क्रीमी लेयर’ कहते हैं. यानी सालाना 8 लाख रुपये या इससे ज्यादा कमाने वालों को आरक्षण का फायदा नहीं मिलता है. चाहे वो किसी भी पिछड़े वर्ग के हों, उन अमीर लोगों को ओबीसी आरक्षण नहीं मिलेगा. इसका मतलब ये हुआ कि जो मुस्लिम सामाजिक और आर्थिक रूप से आगे बढ़ गए हैं, उन्हें भी ये आरक्षण नहीं मिल सकता.
देश में अभी मुस्लिम आरक्षण की क्या है स्थिति?
केंद्र की पिछड़ा वर्ग सूची में कुछ मुस्लिम जातियों को उन राज्यों में आरक्षण दिए जाने का प्रावधान है जहां मंडल आयोग लागू है. पीआईबी की रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, तमिलनाडु में मुस्लिम समुदाय की कुछ जातियों, तेली मुसलमानों और उत्तर प्रदेश, बिहार, केरल असम के मुस्लिम कायस्थों को ओबीसी आरक्षण दिया जा रहा है. हालांकि हर राज्य में मुस्लिम आरक्षण का कोटा अलग-अलग है.
- केरल में 30% ओबीसी कोटे में से मुस्लिमों को शिक्षा में 8% और सरकारी नौकरियों में 10% आरक्षण मिलता है
- तमिलनाडु में लगभग 95% मुस्लिम समुदाय को आरक्षण का फायदा होता है
- बिहार में ओबीसी दो वर्गों में बंटे हैं- पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग. ज्यादातर मुस्लिम वहां ‘अति पिछड़ा वर्ग’ में आते हैं.
- आंध्र प्रदेश में मुस्लिम समुदाय को 5% आरक्षण दिया गया. हालांकि, बाद में रद्द कर दिया गया क्योंकि ये आरक्षण पिछड़ा वर्ग आयोग से परामर्श किए बिना दिया गया था.
आरक्षण देने की क्या कोई शर्त भी है?
सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट और संविधान विशेषज्ञ जी मोहन गोपाल ने मीडिया से एक बयान में कहा, सबसे अहम बात ये है कि हर वो वर्ग जो आरक्षण लेना चाहता है, उसे कुछ खास शर्तें पूरी करनी होती है. पिछड़े वर्गों की पहचान करने के लिए ‘नेशनल कमीशन फॉर बैकवर्ड क्लासेज’ (राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग) कुछ बातों को ध्यान में रखता है.
जैसे क्या समाज में उन्हें नीची निगाह से देखा जाता है? उनके कितने बच्चे स्कूल नहीं जा पाते? या उनके परिवार की संपत्ति कितनी है? अगर ये सब डेटा मौजूद है और साबित होता है कि मुसलमान समाज इन शर्तों पर खरा उतरता है तो संविधान के मुताबिक उन्हें आरक्षण मिल सकता है.
कुछ रिपोर्ट्स बताती हैं कि मुसलमान समाज सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा हुआ है. मिसाल के तौर पर साल 2006 की सच्चर कमेटी की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि मुसलमान समुदाय कुल मिलाकर हिंदू-ओबीसी से भी ज्यादा पिछड़ा हुआ है. इस रिपोर्ट में मुसलमानों के लिए अलग-अलग सहायता कार्यक्रमों की सलाह दी गई थी.
इसी रिपोर्ट के आधार पर केरल सरकार ने 2008 में एक कमेटी बनाई जिसने ये पाया कि केरल में मुसलमान दूसरे समुदायों से काफी पीछे हैं. खासकर सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक क्षेत्रों में पिछड़े हैं. कमेटी ने मुसलमानों के लिए सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण की सिफारिश की थी.
कर्नाटक में कैसे रद्द हो गया मुस्लिम कोटा
कर्नाटक में पहले ओबीसी के लिए 32 फीसदी आरक्षण में से 4% वाली एक उप-श्रेणी मुसलमानों के लिए आरक्षित थी. मई 2023 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले मार्च में भाजपा के नेतृत्व वाली बसवराज बोम्मई सरकार ने ये कोटा रद्द कर दिया था.
तत्कालीन बीजेपी सरकार ने उस 4% को वोक्कालिगा और लिंगायत जैसी प्रभावशाली हिंदू जातियों में बांट दिया था. बीजेपी का कहना था कि धर्म के आधार पर पूरे समुदाय को आरक्षण देना संवैधानिक रूप से अस्वीकार्य है. आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के मुसलमानों को कोटा से लाभ मिलता रहेगा.
मतलब तब की राज्य बीजेपी सरकार ने ये फैसला लिया कि मुसलमान अब पिछड़े नहीं हैं, इसलिए उन्हें आरक्षण का फायदा नहीं मिलना चाहिए. लेकिन जानकारों का कहना है कि ये फैसला गलत है क्योंकि मुसलमानों को उनकी पिछड़ी सामाजिक और आर्थिक स्थिति के आधार पर आरक्षण दिया गया था, न कि सिर्फ उनके धर्म के कारण.